किसान भाइयो, अगर आप प्याज–लहसुन की खेती करते हैं और हर साल सोचते हैं कि उपज अच्छी होने के बावजूद दाम या क्वालिटी में कुछ कमी रह जाती है, तो अब आपकी यह चिंता दूर हो सकती है। कृषि वैज्ञानिकों ने रबी सीजन के लिए एक बिल्कुल स्पष्ट और आसान गाइड तैयार की है, जिसमें बताया गया है कि सूक्ष्म पोषक तत्वों और जैव उर्वरकों का संतुलित उपयोग आपकी फसल की पैदावार को कैसे दोगुना कर सकता है।
प्याज–लहसुन ऐसी फसलें हैं जो कम पोषक तत्व वाली मिट्टी में तुरंत प्रतिक्रिया देती हैं—या तो उत्पादन गिर जाता है या कंद छोटे रह जाते हैं। खासकर मालवा जैसे उर्वर कृषि क्षेत्र में, जहां किसान बड़ी मात्रा में खेती करते हैं, सही पोषक तत्व प्रबंधन बेहद जरूरी है। यही वजह है कि कृषि वैज्ञानिकों की यह सलाह आपके लिए अधिक लाभदायक साबित हो सकती है।
इस गाइड में आप जानेंगे कि — सल्फर की कमी कैसे पूरी करें, सिंचाई कब–कितनी दें, कौन से जैव उर्वरक सबसे बेहतर हैं, और प्याज–लहसुन के कंदों को सही आकार व भंडारण क्षमता कैसे दिलाएं।
मध्यप्रदेश का मालवा क्षेत्र मध्यम काली मिट्टी, सिंचित भूमि और अनुकूल जलवायु के कारण प्याज–लहसुन उत्पादन के लिए बेहद उपयुक्त माना जाता है। यहां अधिकतर किसान सीमांत वर्ग से आते हैं, फिर भी संसाधनों और तकनीक की उपलब्धता के कारण वे बड़ी मात्रा में प्याज–लहसुन की खेती कर रहे हैं और अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं।
सोयाबीन की कटाई के बाद रबी में प्याज व लहसुन की फसल ली जाती है, लेकिन सोयाबीन मिट्टी से सल्फर की अधिक मात्रा खींच लेती है। ऐसे में सल्फर की कमी प्याज–लहसुन के उत्पादन को सीधा प्रभावित करती है, क्योंकि दोनों फसलों को उच्च मात्रा में सल्फर की आवश्यकता होती है।
सल्फर की पर्याप्त उपलब्धता से:
उथली जड़ वाली फसल, इसलिए सिंचाई महत्वपूर्ण
प्याज एक उथली जड़ वाली फसल है जिसकी जड़ें 15 सेमी तक ही फैलती हैं। रोपाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई जरूरी है। इसके बाद कंद बनने तक हर 15–20 दिन में 5–6 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है।
टपक सिंचाई (Drip Irrigation)
रबी सीजन में प्याज और लहसुन की फसलों के लिए टपक सिंचाई सतही सिंचाई की तुलना में अधिक लाभदायक मानी जाती है। टपक प्रणाली से पानी की 40–50 प्रतिशत तक बचत होती है और पौधों को सीधे जड़ों में नमी मिलती है, जिससे उत्पादन और गुणवत्ता दोनों में सुधार होता है। पानी की कमी वाले क्षेत्रों में यह तरीका विशेष रूप से उपयोगी साबित होता है, क्योंकि इससे कम पानी में भी फसल की सिंचाई बिना किसी नुकसान के होती रहती है।
खरपतवार नियंत्रण
प्याज और लहसुन की फसलों में रबी सीजन के दौरान मोथा, दूब, चौलाई, बथुआ जैसे खरपतवार तेजी से फैलते हैं और फसल से पोषक तत्व छीन लेते हैं। इनके प्रभावी नियंत्रण के लिए कृषि वैज्ञानिक ऑक्सीफ्लोरफेन का 10–15 मिली प्रति 15 लीटर पानी और क्विजालोफॉप-इथाइल का 25 मिली प्रति 15 लीटर पानी के साथ छिड़काव करने की सलाह देते हैं। समय पर खरपतवार नियंत्रण करने से फसल की बढ़वार अच्छी होती है और उत्पादन में कमी नहीं आती।
प्याज की फसल की शुरुआत में खेत की तैयारी के दौरान 20–25 टन गोबर की खाद या 3 टन वर्मी कम्पोस्ट मिट्टी में मिला देना आवश्यक है। पोषक तत्वों की दृष्टि से प्याज को प्रति हेक्टेयर 100 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फॉस्फोरस, 50 किग्रा पोटाश और 30 किग्रा सल्फर की आवश्यकता होती है। फास्फोरस, पोटाश, सल्फर और 25 किग्रा नाइट्रोजन रोपाई से पहले मिट्टी में मिला देना चाहिए। बची हुई नाइट्रोजन को रोपाई के 30, 45 और 60 दिन बाद तीन समान भागों में देना उचित रहता है।
बालुई मिट्टी में पोषक तत्व प्रबंधन
यदि प्याज की खेती बालुई (रेतीली) मिट्टी में की जा रही है तो पोषक तत्व पानी के साथ अधिक मात्रा में बाहर निकल जाते हैं। ऐसी स्थिति में पौधों की पोषण जरूरत पूरी करने के लिए NPK 19:19:19 तथा NPK 13:0:46 का 150–200 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की दर से पर्णीय छिड़काव करना लाभदायक होता है। इसके साथ ही पोटेशियम सल्फेट (0:0:50:17.5) का 45, 60 और 75 दिनों बाद छिड़काव करने से कंद का आकार सुधरता है, उपज बढ़ती है और प्याज की भंडारण क्षमता भी बेहतर होती है।
लहसुन की फसल में पोषक तत्वों की मांग प्याज की तुलना में अधिक होती है। इसके लिए खेत में 20–25 टन गोबर की खाद का उपयोग करना चाहिए। प्रति हेक्टेयर 110 किग्रा डीएपी, 175 किग्रा यूरिया और 80 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश देने की सिफारिश की जाती है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय और शेष मात्रा 30–40 दिन बाद देने से लहसुन की बढ़वार और कंद निर्माण बेहतर होता है।
जैव उर्वरकों का उपयोग
फसल को अधिक मजबूती देने के लिए प्याज में जिंक सल्फेट, एज़ोटोबैक्टर या पीएसबी (PSB) जैव उर्वरक का प्रति हेक्टेयर 5 किग्रा उपयोग करना उपयुक्त होता है। जैव उर्वरक मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाते हैं और पौधों की जड़ विकास को मजबूती देते हैं, जिससे उपज में वृद्धि होती है।
बीज उपचार और रोग प्रबंधन
प्याज और लहसुन की फसलों में रोग प्रबंधन के लिए बीज उपचार बहुत जरूरी है। प्याज के बीज को बुवाई से पहले कार्बेन्डाजिम + मैन्कोजेब की 2 ग्राम प्रति किलोग्राम की मात्रा से उपचारित करने से बीज जनित रोगों से बचाव होता है। पौधशाला में पौध पीली पड़ने पर NPK 19:19:19 का 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव लाभदायक होता है। आर्दगलन से बचाव के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी का 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर प्रयोग करने की सलाह दी जाती है।
1. प्याज और लहसुन में कौन सा पोषक तत्व सबसे महत्वपूर्ण है?
सल्फर इन दोनों फसलों के लिए अत्यंत आवश्यक है क्योंकि यह कंद की गुणवत्ता और भंडारण क्षमता बढ़ाता है।
2. प्याज की फसल में कितनी सिंचाई करनी चाहिए?
रोपाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई और उसके बाद 15–20 दिन के अंतराल पर कुल 5–6 सिंचाइयाँ आवश्यक होती हैं।
3. प्याज–लहसुन में कौन सा खरपतवारनाशी सबसे ज्यादा प्रभावी है?
ऑक्सीफ्लोरफेन और क्विजालोफॉप–इथाइल का संयोजन प्रभावी माना गया है।
4. क्या टपक सिंचाई प्याज में लाभदायक है?
हाँ, इससे पानी की बचत होती है और उत्पादन भी बढ़ता है।
5. प्याज के पौध पीली क्यों पड़ती है?
यह पोषक तत्वों की कमी या फफूंद संक्रमण के कारण होता है। ऐसे में NPK 19:19:19 का छिड़काव लाभकारी है।
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