खेती में रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक और लगातार उपयोग अब किसानों के लिए नई चुनौती बनता जा रहा है। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा कराए गए एक सर्वे में सामने आया है कि बीते कुछ वर्षों में यूरिया और डीएपी (DAP) की खपत लगातार बढ़ी है। इसका सीधा असर मिट्टी की सेहत पर पड़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि डीएपी के अधिक प्रयोग से जमीन की उर्वरता घट रही है और कई क्षेत्रों में मिट्टी धीरे-धीरे बंजर होती जा रही है।
ऐसे में किसानों के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या पैदावार पर असर डाले बिना डीएपी की मात्रा को कम किया जा सकता है? कृषि विशेषज्ञों का जवाब है—हाँ, सही तकनीक और जैविक विकल्प अपनाकर यह संभव है।
डीएपी एक फॉस्फेट उर्वरक है, जो पौधों को फॉस्फोरस उपलब्ध कराता है। लेकिन समस्या यह है कि पौधे डीएपी का केवल लगभग 20 प्रतिशत ही उपयोग कर पाते हैं। बाकी हिस्सा मिट्टी में फिक्स हो जाता है और धीरे-धीरे मिट्टी का पीएच मान बढ़ाने लगता है।
पीएच बढ़ने के साथ-साथ अन्य पोषक तत्व जैसे जिंक, आयरन और कैल्शियम पौधों को उपलब्ध नहीं हो पाते। इसका नतीजा यह होता है कि किसान को हर साल ज्यादा खाद डालनी पड़ती है, जिससे लागत बढ़ती है और जमीन की गुणवत्ता और खराब होती जाती है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, कुछ जैविक और प्राकृतिक उपाय अपनाकर डीएपी की खपत को 35–40 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है, वह भी बिना पैदावार घटाए।
एनपीके कंसोर्शिया और पीएसबी का उपयोग
एनपीके कंसोर्शिया और पीएसबी (फॉस्फोरस सोल्यूबलाइजिंग बैक्टीरिया) का घोल बनाकर खेत में डालने से मिट्टी में मौजूद फॉस्फोरस पौधों को आसानी से मिलने लगता है। इससे डीएपी की अतिरिक्त जरूरत नहीं पड़ती।
मिनरल कैल्शियम बोरेट का प्रयोग
यह एक प्राकृतिक उत्पाद है, जिसमें 6 आवश्यक पोषक तत्व मौजूद होते हैं। यह फॉस्फोरस को पौधों के लिए आसानी से उपलब्ध कराता है। इसका प्रयोग बुवाई के समय करना सबसे अधिक लाभकारी होता है। पहली सिंचाई तक इसे दिया जा सकता है, उसके बाद प्रयोग न करने की सलाह दी जाती है।
एंडोमाइकोराइजा फंगस का फायदा
एंडोमाइकोराइजा एक लाभकारी फंगस है, जो पौधों की जड़ों से चिपककर जड़ों का फैलाव बढ़ाती है। इससे फॉस्फोरस और जिंक जैसे तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है और मिट्टी में नमी बनी रहती है। हल्की और कमजोर मिट्टी के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं है।
विशेषज्ञों की सलाह: यदि मिनरल कैल्शियम बोरेट और एंडोमाइकोराइजा का उपयोग बुवाई के समय किया जाए, तो डीएपी की खपत को 35–40% तक कम किया जा सकता है।
कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि फॉस्फेट आधारित उर्वरक मिट्टी का पीएच मान बढ़ाते हैं। जैसे-जैसे पीएच बढ़ता है, फसल को उतनी ही ज्यादा मात्रा में पोषक तत्वों की जरूरत पड़ती है। इसके चलते किसान और अधिक खाद डालता है, जिससे समस्या और गंभीर हो जाती है।
एक समय ऐसा आता है जब चाहे कितनी भी खाद डाल दी जाए, पौधों को पोषण नहीं मिल पाता और जमीन बंजर होने लगती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, जिन क्षेत्रों में मिट्टी हल्की है और पीएच 8 से अधिक है, वहां SSP (सिंगल सुपर फॉस्फेट) का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए। SSP की ज्यादा मात्रा डालनी पड़ती है और हर साल समान उत्पादन के लिए इसकी मात्रा बढ़ानी होती है, जिससे मिट्टी पर नकारात्मक असर पड़ता है।
निष्कर्ष
लगातार डीएपी का उपयोग लंबे समय में मिट्टी की उर्वरता को नुकसान पहुंचा रहा है। लेकिन यदि किसान समय रहते जैविक विकल्प, माइक्रोबियल कल्चर और प्राकृतिक पोषक तत्वों को अपनाएं, तो न केवल डीएपी की खपत कम की जा सकती है, बल्कि जमीन को बंजर होने से भी बचाया जा सकता है। टिकाऊ और लाभकारी खेती के लिए अब रासायनिक उर्वरकों के साथ संतुलित और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना बेहद जरूरी हो गया है।
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