किसान भाइयों, धान की कटाई शुरू होते ही हर साल एक बड़ी समस्या सामने आती है – पराली जलाना। इससे न सिर्फ हवा ज़हरीली होती है, बल्कि आपकी ज़मीन की ताकत भी धीरे-धीरे खत्म हो जाती है। लेकिन अब सरकार ने इस परेशानी का ठोस समाधान निकाल लिया है। पराली जलाने पर सख्ती के साथ-साथ किसानों को राहत देने के लिए पुआल प्रबंधन यंत्रों पर 80 प्रतिशत तक की भारी सब्सिडी दी जा रही है।
अब किसान पराली जलाने के झंझट से बचकर, उसी पुआल को खेत में मिलाकर प्राकृतिक खाद बना सकते हैं। इससे पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा और खेत की उर्वरता भी बढ़ेगी। सरकार की इस नई पहल से खेती न सिर्फ आसान होगी, बल्कि आने वाले समय में उत्पादन और मुनाफा दोनों में बढ़ोतरी देखने को मिलेगी।
बिहार सहित कई राज्यों में इस समय खरीफ सीजन की धान की कटाई तेज़ी से चल रही है। कटाई के बाद खेतों में भारी मात्रा में पुआल बच जाता है, जिसे हटाने के लिए कई किसान आग लगा देते हैं। इससे वायु प्रदूषण बढ़ता है और मिट्टी के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इसे रोकने के लिए कृषि विभाग ने पुआल प्रबंधन यंत्रों पर मिलने वाली सब्सिडी की दर बढ़ा दी है, ताकि किसान इन मशीनों को आसानी से खरीद सकें।
कृषि मंत्री रामकृपाल यादव ने जानकारी दी कि पराली जलाने की समस्या को कम करने के उद्देश्य से पुआल को मिट्टी में मिलाने वाले लगभग सभी प्रमुख कृषि यंत्रों को 80 प्रतिशत अनुदान की श्रेणी में शामिल किया गया है। इनमें स्ट्रॉ बेलर, हैप्पी सीडर, जीरो टिल सीड-कम-फर्टिलाइजर ड्रिल, रीपर-कम-बाइंडर, स्ट्रॉ रीपर और रोटरी मल्चर जैसे यंत्र शामिल हैं। पहले इन यंत्रों पर अनुदान की दर कम थी, लेकिन अब इसे बढ़ाकर किसानों के लिए अधिक लाभकारी बनाया गया है।
कृषि विभाग के अनुसार पराली जलाने से मिट्टी की उर्वर शक्ति कम हो जाती है। आग की वजह से खेत का तापमान बढ़ता है, जिससे मिट्टी में मौजूद लाभकारी सूक्ष्मजीव, केंचुए और जैविक तत्व नष्ट हो जाते हैं। वहीं, यदि पुआल को मिट्टी में मिला दिया जाए तो यह प्राकृतिक खाद का काम करता है और मिट्टी की सेहत में सुधार होता है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अगर किसान एक टन पुआल को खेत में मिलाते हैं तो मिट्टी को 20–30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60–100 किलोग्राम पोटाश, 5–7 किलोग्राम सल्फर और करीब 600 किलोग्राम ऑर्गेनिक कार्बन प्राप्त होता है। इससे रासायनिक खादों पर निर्भरता घटती है और मिट्टी की जल धारण क्षमता भी बेहतर होती है।
पुआल प्रबंधन यंत्रों के उपयोग से न केवल पराली जलाने की समस्या कम होगी, बल्कि किसानों को लंबी अवधि में आर्थिक लाभ भी मिलेगा। पुआल से तैयार वर्मी कम्पोस्ट और जैविक खाद खेत की उर्वरता बढ़ाने के साथ-साथ उत्पादन में भी सुधार करती है। इससे अगली फसल की पैदावार बेहतर होती है और लागत में कमी आती है।
कृषि विभाग ने किसानों से अपील की है कि वे पराली जलाने की बजाय आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग करें और पुआल को मिट्टी में मिलाकर प्राकृतिक खाद तैयार करें। सरकार का मानना है कि इस पहल से पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ खेती को टिकाऊ और लाभकारी बनाया जा सकता है।
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