भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां चावल (धान) एक प्रमुख खाद्यान्न फसल के रूप में उगाई जाती है। बदलते मौसम, जल संकट और बढ़ती लागत को देखते हुए अब किसान ऐसी धान किस्मों की तलाश में रहते हैं, जो कम पानी में भी अच्छी उपज दे सकें। वैज्ञानिकों ने किसानों की इन्हीं जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कई उन्नत किस्में विकसित की हैं।
इस लेख में हम आपको बताएंगे कम पानी में बेहतर उत्पादन देने वाली धान की टॉप 5 किस्मों (Top Paddy Varieties) के बारे में, जो न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं, बल्कि किसानों की आमदनी बढ़ाने में भी सहायक हैं।
यह किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। इसे MTU-1010 किस्म से तैयार किया गया है। यह किस्म सूखा एवं लवणीय मिट्टी में भी उगाई जा सकती है और कठिन परिस्थितियों में भी अच्छी उपज देती है।
पूसा डीएसटी किस्म सामान्य किस्मों की तुलना में 20% अधिक उत्पादन देने में सक्षम है। जो किसान जल संकट से जूझ रहे हैं, उनके लिए यह किस्म अत्यंत लाभकारी साबित हो सकती है।
यह किस्म हैदराबाद स्थित भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान (ICAR-IIRR) द्वारा विकसित की गई है। इसकी विशेषता है कि यह जल्दी पकती है और मीथेन गैस के उत्सर्जन को भी कम करती है, जिससे यह पर्यावरण के लिए भी बेहतर है।
डीआरआर धान 100 सामान्य किस्मों की तुलना में लगभग 19% अधिक उपज देती है। यह 100 से 105 दिनों में तैयार हो जाती है, जिससे किसान कम समय में फसल काट सकते हैं।
इस किस्म को खासकर ओडिशा और बिहार जैसे उन राज्यों के लिए विकसित किया गया है जहां वर्षा असामान्य होती है और सिंचाई की सुविधा सीमित होती है। यह किस्म ऊपरी भूमि और वर्षा आधारित खेती के लिए आदर्श है।
सीआर धान 108 लगभग 112 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जिससे यह किसानों को समय पर फसल कटाई की सुविधा देती है। यह किस्म विशेष रूप से उन किसानों के लिए फायदेमंद है जो अस्थिर मानसून से परेशान हैं।
पूसा-2090 किस्म लगभग 120-125 दिनों में तैयार हो जाती है और प्रति एकड़ 34-35 क्विंटल तक की उपज देती है। यह किस्म न केवल उत्पादन में बेहतर है, बल्कि पराली जलाने की आवश्यकता भी कम करती है, जिससे यह पर्यावरण के लिए भी उपयोगी है।
यह किस्म उच्च उत्पादन देने के साथ-साथ किसानों को कृषि अपशिष्ट प्रबंधन में भी मदद करती है। यदि आप पर्यावरण-अनुकूल खेती करना चाहते हैं, तो यह किस्म आपके लिए उपयुक्त विकल्प है।
स्वर्णा-सब 1 धान की किस्म विशेष रूप से बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों के लिए तैयार की गई है। यह किस्म 140-145 दिनों में परिपक्व होती है और इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि यह 14 दिनों तक पानी में डूबी रहने के बावजूद जीवित रह सकती है।
इस किस्म के चावल के दाने छोटे और मोटे होते हैं, जो पूर्वी भारत जैसे पश्चिम बंगाल, बिहार, असम आदि राज्यों के किसानों के लिए एक भरोसेमंद विकल्प है।
कम पानी में अधिक उत्पादन देने वाली ये पांचों उन्नत किस्में किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही हैं। ये न केवल सिंचाई पर निर्भरता कम करती हैं, बल्कि उत्पादन लागत घटाकर किसानों की आमदनी बढ़ाने में भी मददगार हैं।
यदि आप भी धान की खेती करते हैं और जल संकट की समस्या से परेशान हैं, तो इन किस्मों को अपनाकर आप एक नई दिशा की ओर कदम बढ़ा सकते हैं।