Onion farming: प्याज की खेती में उर्वरकों का सही इस्तेमाल कैसे करें? जानें बंपर पैदावार के लिए जरूरी टिप्स

Onion farming: प्याज की खेती में उर्वरकों का सही इस्तेमाल कैसे करें? जानें बंपर पैदावार के लिए जरूरी टिप्स

प्याज की खेती

kd-icon
कृषि दुनिया
  • 16 Feb, 2025 01:12 PM IST ,
  • Updated Mon, 17 Feb 2025 02:23 PM

प्याज की खेती में सही खाद और उर्वरकों का उपयोग पैदावार बढ़ाने के लिए बेहद जरूरी है। वैज्ञानिकों के अनुसार, अगर प्याज की फसल में उचित मात्रा में खाद और उर्वरक डाले जाएं, तो उत्पादन अच्छा होता है। रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी के कृषि वैज्ञानिकों ने बताया है कि प्याज की खेती के लिए गोबर की खाद, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का संतुलित उपयोग करने से फसल की गुणवत्ता भी बेहतर होती है।

प्याज की खेती के लिए जरूरी उर्वरक और उनकी मात्रा:

प्याज की खेती के लिए सही मात्रा में खाद और उर्वरकों का उपयोग करना आवश्यक है। वैज्ञानिकों के अनुसार, प्याज की अच्छी पैदावार के लिए प्रति हेक्टेयर खेत में 400 से 500 क्विंटल अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद मिलानी चाहिए। इसके अलावा, 100 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो फास्फोरस और 50 किलो पोटाश डालना चाहिए। यदि मिट्टी में जिंक की कमी हो, तो 25 किलो जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर मिलाना आवश्यक है।

खाद और उर्वरकों का सही समय पर प्रयोग कैसे करें?

खेत की अच्छी तैयारी के लिए गोबर की खाद, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का संतुलन बनाए रखना जरूरी है। खेत की तैयारी के समय पूरी गोबर की खाद, फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा मिट्टी में डालनी चाहिए। जिंक की कमी वाले क्षेत्रों में जिंक सल्फेट को रोपाई से पहले खेत में मिलाना चाहिए।

जब प्याज की रोपाई के करीब डेढ़ माह बाद फसल बढ़ने लगती है, तब बची हुई नाइट्रोजन की मात्रा खेत में डालनी चाहिए। यदि फसल में जिंक की कमी के लक्षण दिखते हैं, तो 5 किलो जिंक सल्फेट का छिड़काव किया जा सकता है।

प्याज की सिंचाई विधि – कब और कैसे करें?

प्याज की फसल को शुरुआती अवस्था में कम सिंचाई की जरूरत होती है, लेकिन बढ़ते समय अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। बुवाई या रोपाई के समय हल्की सिंचाई करनी चाहिए, ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे। तीन-चार दिन बाद दोबारा हल्की सिंचाई करनी जरूरी होती है।

जब प्याज के कंद बनने लगते हैं, तब पर्याप्त मात्रा में सिंचाई करनी चाहिए, क्योंकि इस समय पानी की कमी से प्याज का आकार छोटा रह जाता है। फसल कटाई से कुछ दिन पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए, जब पौधों की पत्तियां पीली पड़कर गिरने लगती हैं। इससे प्याज के कंद अच्छे से पक जाते हैं और उनका भंडारण आसान हो जाता है।

प्याज की प्रमुख बीमारी – आर्द्रगलन (डैंपिंग ऑफ) और उसका नियंत्रण:

आर्द्रगलन रोग प्याज की नर्सरी और शुरुआती अवस्था में फसल को नुकसान पहुंचाता है। यह रोग पीथियम, फ्यूजेरियम और राइजोक्टोनिया नामक फंगस के कारण फैलता है। इस रोग में पौधे की जड़ों के पास सड़न शुरू हो जाती है और धीरे-धीरे पौधे गिरकर मरने लगते हैं। खासतौर पर खरीफ मौसम में इस बीमारी का प्रकोप अधिक देखने को मिलता है।

इस रोग से बचाव के लिए बुवाई से पहले बीज को थाइरम या कैप्टान (2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) से उपचारित करना चाहिए। नर्सरी में थाइरम (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) या बाविस्टीन (1 ग्राम प्रति लीटर पानी) का हर 15 दिन पर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा, ट्राइकोडर्मा विरडी (5 ग्राम प्रति लीटर पानी) से जमीन और जड़ों का छिड़काव करने से भी इस बीमारी का प्रभाव कम किया जा सकता है।

सही खाद प्रबंधन से बंपर प्याज उत्पादन संभव:

यदि आप नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का संतुलित उपयोग करते हैं और समय पर सिंचाई व फफूंदनाशक छिड़काव करते हैं, तो आपकी प्याज की फसल अधिक पैदावार देगी। इससे न केवल उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि प्याज की गुणवत्ता भी बेहतर होगी और किसानों को अधिक मुनाफा मिलेगा।

Advertisement
Advertisement