सिरोही। गर्मियों के मौसम में खीरा, करेला, लौकी, कद्दू और तोरई जैसी लतादार सब्जियों की खेती किसानों को बेहतर आमदनी दिला सकती है। लेकिन इसके लिए सही तकनीक और उपयुक्त मिट्टी का चुनाव बेहद जरूरी है। कृषि विभाग सिरोही के सहायक कृषि अधिकारी ने जानकारी देते हुए बताया कि इन सब्जियों की अच्छी पैदावार के लिए कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना गया है, जिसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो। साथ ही मिट्टी में प्रचुर मात्रा में जैविक पदार्थ (ऑर्गेनिक मैटर) मौजूद होने चाहिए।
खेती शुरू करने से पहले खेत की गहरी जुताई करना आवश्यक है। इसके बाद हल्की जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बनाया जाए। मिट्टी का पीएच मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए। खेत में अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद मिलाना बेहद जरूरी है, ताकि मिट्टी की उर्वरता बनी रहे।
गर्मियों में इन सब्जियों की बुवाई का सही समय फरवरी से मार्च के बीच होता है। अलग-अलग फसलों के लिए बीज की मात्रा भी अलग होती है:
• खीरा – 2 से 2.5 किलो/हेक्टेयर
• लौकी – 4 से 5 किलो/हेक्टेयर
• करेला – 5 से 6 किलो/हेक्टेयर
• तोरई – 4.5 से 5 किलो/हेक्टेयर
• कद्दू – 3 से 4 किलो/हेक्टेयर
बुवाई से पहले बीजों को फफूंदनाशक दवा से उपचारित करना चाहिए। यदि किसान चाहें तो पहले पौध तैयार कर रोपण विधि से भी खेती कर सकते हैं।
सिंचाई और जल प्रबंधन: फसल की शुरुआती अवस्था में नियमित सिंचाई जरूरी है। लेकिन ध्यान रहे कि अत्यधिक पानी से बचना चाहिए, क्योंकि इससे पौधों की जड़ें सड़ सकती हैं और फसल को नुकसान हो सकता है। जल संतुलन बनाए रखना इस खेती की सफलता की कुंजी है।
उर्वरक का संतुलित प्रयोग: किसानों को चाहिए कि उर्वरकों का उपयोग करने से पहले मिट्टी की जांच जरूर कराएं। इसके बाद ही उपयुक्त मात्रा में रासायनिक या जैविक उर्वरकों का इस्तेमाल करें। इससे ना सिर्फ फसल की गुणवत्ता सुधरेगी, बल्कि लागत भी घटेगी।
इन फसलों को फल मक्खी, लीफ माइनर, चेपा जैसे कीटों से नुकसान हो सकता है। इसके अलावा फंगल और वायरल रोगों से भी इन सब्जियों की उपज पर असर पड़ता है।
इन समस्याओं से बचाव के लिए किसानों को समय पर रासायनिक दवाओं, जैविक नियंत्रण विधियों और नियमित निगरानी का सहारा लेना चाहिए।
फसल को खरपतवार और मौसम से बचाएं:
खेत में खरपतवार नियंत्रण पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि ये फसल से पोषक तत्व छीन लेते हैं। यदि किसान अन्य मौसमों में भी इस खेती को करना चाहते हैं, तो पॉलीहाउस तकनीक अपनाकर अगेती फसल ली जा सकती है।
उन्नत किस्मों का करें चयन: बेहतर उपज के लिए फसल की उन्नत किस्मों का चुनाव बहुत जरूरी है। ये किस्में रोग-प्रतिरोधी होती हैं और कम समय में अधिक पैदावार देती हैं, जिससे किसानों को बाजार में बेहतर दाम भी मिलते हैं।
अगर किसान वैज्ञानिक पद्धति से कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती करें, तो ना केवल बंपर उत्पादन मिल सकता है, बल्कि बाजार में अच्छी कीमत पाकर तगड़ी कमाई भी की जा सकती है। सिरोही जिले के कृषि विभाग द्वारा दी गई ये सलाह सभी किसानों के लिए उपयोगी साबित हो सकती है।
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