इस साल फाल्गुन पूर्णिमा 13 मार्च को सुबह 10:35 बजे से प्रारंभ होगी और 14 मार्च दोपहर 12:24 बजे इसका समापन होगा। इस बार छोटी होली पर दिनभर भद्रा का प्रभाव रहेगा, जिसके कारण रात 11:26 बजे भद्रा समाप्त होने के बाद ही होलिका दहन किया जा सकेगा।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस वर्ष पूरे दिन भद्रा का प्रभाव रहेगा, इसलिए होलिका दहन का सही समय केवल रात में मिलेगा।
होलिका दहन का पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। हिंदू पुराणों में बताया गया है कि प्राचीन काल में एक राक्षस राजा हिरण्यकशिपु था, जो अमर होने की इच्छा रखता था। उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या कर उनसे एक विशेष वरदान प्राप्त किया, जिसमें उसने यह शर्तें रखी थीं—
इस वरदान के कारण वह अत्यंत अहंकारी और निर्दयी बन गया। उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा करने पर रोक लगा दी। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था और उसने अपने पिता के आदेश का पालन करने से इनकार कर दिया। इससे क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को मारने की कई कोशिशें कीं, लेकिन हर बार प्रह्लाद बच जाता।
आखिरकार, हिरण्यकशिपु की बहन होलिका, जिसे अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था, उसने प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने का षड्यंत्र रचा। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित बच गया और होलिका जलकर भस्म हो गई। तभी से होलिका दहन बुराई के अंत और सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है।
होलिका दहन के साथ सामाजिक संदेश:
होलिका दहन सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमें अहंकार, अन्याय और अधर्म के विनाश का संदेश भी देता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि चाहे बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, सत्य और धर्म की विजय अवश्य होती है।
इस होली, बुराइयों को जलाएं और सच्चाई के मार्ग पर चलने का संकल्प लें! आप सभी को होलिका दहन और होली की हार्दिक शुभकामनाएं!