सिलबट्टे और मिक्सर में कौन है असली चटनी का मास्टर? जानें चौंकाने वाली सच्चाई

सिलबट्टे और मिक्सर में कौन है असली चटनी का मास्टर? जानें चौंकाने वाली सच्चाई

सिलबट्टा या मिक्सर

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कृषि दुनिया
  • 30 Dec, 2024 11:30 AM IST ,
  • Updated Mon, 30 Dec 2024 12:30 PM

चटनी भारतीय भोजन का एक अहम हिस्सा है। यह न केवल हमारे भोजन को स्वादिष्ट बनाती है, बल्कि इसमें कई पोषक तत्व भी होते हैं। चटनी बनाने के दो प्रमुख तरीके हैं: सिलबट्टे का उपयोग और मिक्सर ग्राइंडर का उपयोग। दोनों तरीकों से बनी चटनी में स्वाद, बनावट, और पोषण में अंतर होता है। इस ब्लॉग में हम सिलबट्टे और मिक्सर से चटनी बनाने की प्रक्रिया, उनके फायदों और नुकसान के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

सिलबट्टे से बनी चटनी: एक पारंपरिक तरीका Chutney made from Silbatta: a traditional method:

  1. प्रक्रिया और मेहनत
    सिलबट्टा एक पारंपरिक उपकरण है, जो पत्थर का बना होता है। इसमें चटनी को रगड़-रगड़कर पीसा जाता है। यह प्रक्रिया समय लेने वाली और मेहनत भरी होती है, लेकिन इसके फायदे अनगिनत हैं। सिलबट्टे से चटनी बनाने में सामग्री धीरे-धीरे पिसती है, जिससे सभी स्वाद और पोषक तत्व अच्छे से मिल जाते हैं।
  2. स्वाद का गहरापन
    सिलबट्टे में पीसी गई चटनी का स्वाद गहरा और समृद्ध होता है। इसकी वजह यह है कि रगड़ने की प्रक्रिया में सामग्री के प्राकृतिक तेल और रस धीरे-धीरे बाहर निकलते हैं, जो चटनी के स्वाद को बढ़ाते हैं।
  3. पोषण में बढ़ोतरी
    सिलबट्टे से चटनी पीसने के दौरान पत्थर के छोटे-छोटे अंश उसमें मिल जाते हैं। इन पत्थरों में मिनरल्स, माइक्रोन्यूट्रिएंट्स और ट्रेस मिनरल्स होते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं।
  4. तापमान का नियंत्रण
    सिलबट्टे से चटनी पीसने के दौरान ज्यादा गर्मी नहीं उत्पन्न होती, जिससे सामग्री के पोषक तत्व और वायलेटाइल ऑयल संरक्षित रहते हैं। यह वायलेटाइल ऑयल चटनी को न केवल स्वादिष्ट बनाते हैं, बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होते हैं।

मिक्सर से बनी चटनी: आधुनिक सुविधा Chutney made with mixer: modern convenience:

  1. प्रक्रिया में सरलता
    मिक्सर ग्राइंडर का उपयोग करना आज के समय में बेहद आसान और तेज़ है। इसमें चटनी बनाने में न तो ज्यादा समय लगता है और न ही ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। सामग्री को मिक्सर में डालकर एक बटन दबाने से ही चटनी तैयार हो जाती है।
  2. स्वाद का हल्कापन
    मिक्सर में सामग्री महीन कट-कटकर बनती है, जिससे चटनी का स्वाद सिलबट्टे की तुलना में हल्का होता है। इसमें रगड़ने की प्रक्रिया नहीं होती, जिससे सामग्री के प्राकृतिक तेल और रस पूरी तरह से नहीं निकल पाते।
  3. पोषण में कमी
    मिक्सर में चटनी पीसने के दौरान तेज़ गति से ब्लेड घूमने के कारण तापमान बढ़ जाता है। इस प्रक्रिया में सामग्री के पोषक तत्व और वायलेटाइल ऑयल बाहर निकल जाते हैं, जिससे चटनी के पोषण मूल्य में कमी आ सकती है।
  4. समय की बचत
    हालांकि मिक्सर चटनी बनाने में कम समय लेता है, लेकिन यह पारंपरिक स्वाद और पोषण का विकल्प नहीं हो सकता।

सिलबट्टा: एक परंपरा की झलक Silbatta: A glimpse of a tradition:

  1. ग्रामीण जीवन का अभिन्न हिस्सा
    सिलबट्टा भारतीय ग्रामीण जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। पहले समय में हर घर में सिलबट्टा मौजूद होता था। यह न केवल चटनी, बल्कि मसाले और अन्य सामग्रियों को पीसने के लिए भी उपयोग में लाया जाता था।
  2. बुजुर्गों की पसंद
    आज भी कई बुजुर्ग सिलबट्टे का उपयोग करना पसंद करते हैं। उनके अनुसार, सिलबट्टे पर पीसी गई चटनी का स्वाद मिक्सर में बनी चटनी से बेहतर होता है। उनके अनुभव और पारंपरिक ज्ञान से हमें यह सीखने को मिलता है कि धीमी और प्राकृतिक प्रक्रिया से बनी चीजें हमेशा बेहतर होती हैं।
  3. पर्यावरण के लिए अनुकूल
    सिलबट्टा एक पर्यावरण के लिए अनुकूल उपकरण है। यह बिजली का उपयोग नहीं करता और लंबे समय तक टिकाऊ रहता है। यह प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग करने का एक उदाहरण है।

सिलबट्टा बनाम मिक्सर: कौन बेहतर?

विशेषतासिलबट्टामिक्सर ग्राइंडर
स्वादगहरा और समृद्धहल्का और कम गहरा
पोषणअधिक (मिनरल्स और ऑयल संरक्षित)कम (ऑयल और पोषक तत्व खो सकते हैं)
समयज्यादा समय लगता हैकम समय में तैयार
मेहनतज्यादा मेहनतकम मेहनत
पर्यावरण अनुकूलतापर्यावरण अनुकूलबिजली की खपत करता है

सिलबट्टा और मिक्सर, दोनों के अपने-अपने फायदे और नुकसान हैं। सिलबट्टा जहां पारंपरिक स्वाद और पोषण को बनाए रखता है, वहीं मिक्सर आधुनिक जीवन की सुविधा और समय की बचत का प्रतीक है। हालांकि, यदि आप अपने भोजन में पारंपरिक स्वाद और पोषण चाहते हैं, तो सिलबट्टे का उपयोग करना एक बेहतर विकल्प हो सकता है। वहीं, समय की कमी होने पर मिक्सर ग्राइंडर एक सुविधाजनक समाधान है।

आधुनिकता के इस दौर में, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम अपनी पारंपरिक विधियों और उपकरणों को पूरी तरह से न भूलें। सिलबट्टा केवल एक उपकरण नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और परंपरा का हिस्सा है। इसे अपनाकर न केवल हम अपने भोजन को स्वादिष्ट बना सकते हैं, बल्कि अपने स्वास्थ्य और पर्यावरण को भी लाभ पहुंचा सकते हैं।

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