गन्ने की फसल पर कहर बनकर टूट रहा है ये कीट, एक्सपर्ट ने बताए असरदार बचाव के तरीके

गन्ने की फसल पर कहर बनकर टूट रहा है ये कीट, एक्सपर्ट ने बताए असरदार बचाव के तरीके

गन्ने की फसल पर कीटों का हमला

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कृषि दुनिया
  • 14 Apr, 2025 12:00 PM IST ,
  • Updated Mon, 14 Apr 2025 04:26 PM

गन्ना किसानों के लिए अप्रैल का महीना सतर्कता का समय होता है क्योंकि इस दौरान एक खतरनाक कीट पायरिल्ला का प्रकोप तेजी से बढ़ जाता है। यह कीट गन्ने की पत्तियों से रस चूसकर फसल की उपज और गुणवत्ता दोनों को नुकसान पहुंचाता है। समय पर इसकी पहचान और नियंत्रण जरूरी है, वरना फसल को भारी हानि झेलनी पड़ सकती है।

गन्ने की फसल के लिए बड़ा खतरा बनता जा रहा है पायरिल्ला कीट

उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और बिहार जैसे गन्ना उत्पादक राज्यों में यह कीट किसानों के लिए गंभीर चिंता का कारण बन चुका है। पायरिल्ला कीट मुख्यतः अप्रैल से लेकर अक्टूबर तक सक्रिय रहता है। मोदी शुगर मिल मोदीनगर के गन्ना विकास प्रबंधक राजीव त्यागी के अनुसार, इस कीट का प्रकोप खासकर अप्रैल-मई में शुरू होता है और अगस्त से अक्टूबर तक अपने चरम पर पहुंच जाता है।

पत्तियों से रस चूसकर करता है फसल को कमजोर:

राजीव त्यागी बताते हैं कि पायरिल्ला के नवजात शिशु गन्ने की पत्तियों से रस चूसते हैं, जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और पौधा कमजोर हो जाता है। इसके चलते गन्ने की उपज में 28-50% तक की गिरावट आ सकती है। इतना ही नहीं, गन्ने में मौजूद सुक्रोज की मात्रा 2-34% और शुद्धता 3-26% तक घट सकती है।

इस कीट की पहचान भूरे रंग की देह और सिर के आगे चोंच जैसी संरचना से की जा सकती है। इसके निम्फ के पीछे दो पूंछ जैसी संरचनाएं होती हैं और इसके प्रकोप के बाद पत्तियों पर लसलसा पदार्थ और काली फफूंद दिखाई देती है।

समय पर उपाय जरूरी, वरना भारी नुकसान:

पायरिल्ला कीट सबसे पहले अप्रैल माह में दिखाई देता है। ऐसे में शुरुआती लक्षण दिखते ही कुछ जरूरी कदम उठाने चाहिए:

  • संक्रमित पत्तियों को काटकर खेत से बाहर निकालें और जला दें या दबा दें।
  • खेत में खरपतवार न जमने दें क्योंकि ये कीटों के लिए आश्रय स्थल बनते हैं।
  • सुबह-शाम निगरानी करें ताकि संक्रमण शुरुआती अवस्था में ही पकड़ में आ सके।
  • वयस्क कीटों को आकर्षित कर नष्ट करने के लिए प्रकाश प्रपंच (Light Traps) का उपयोग करें।

जैविक तरीकों से करें पायरिल्ला की रोकथाम:

प्राकृतिक रूप से भी इस कीट को नियंत्रित किया जा सकता है:

  • अंड परजीवी: टेट्रास्टिकस पायरिली, काइलोन्यूरस पायरिली और ओनसिरटस पैपिलियोनेसी जैसे कीट मानसून के बाद पायरिल्ला की 80% आबादी को नियंत्रित कर सकते हैं।
  • मेटाराइजियम एनीसोपली नामक फफूंद के स्पोर का छिड़काव करने पर यह कीट 94% तक खत्म हो सकते हैं, खासकर कम तापमान और ज्यादा नमी में।

रासायनिक नियंत्रण: जब जैविक उपाय ना हों पर्याप्त:

यदि जैविक उपायों से नियंत्रण संभव न हो, तो निम्नलिखित कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है:

  • डाईमेथोएट 30% E.C. – 1 लीटर/हेक्टेयर
  • प्रोफेनोफॉस 40% + साइपरमेथ्रिन 4% E.C. – 750 मिली/हेक्टेयर
  • क्वीनालफॉस 25% E.C. – 800 मिली/हेक्टेयर
  • डाइक्लोरवास 76% E.C. – 315 मिली/हेक्टेयर

इन सभी का 625 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। हमेशा अनुशंसित मात्रा और सुरक्षा निर्देशों का पालन करें।

समय पर नियंत्रण से बढ़ेगी उपज और गुणवत्ता: पायरिल्ला कीट गन्ने की फसल के लिए बेहद हानिकारक है, लेकिन समय रहते जैविक और रासायनिक उपाय अपनाकर इसे रोका जा सकता है। इससे गन्ने की उपज और गुणवत्ता बनी रहती है और किसान को आर्थिक नुकसान से बचाया जा सकता है।

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