गन्ना किसानों के लिए अप्रैल का महीना सतर्कता का समय होता है क्योंकि इस दौरान एक खतरनाक कीट पायरिल्ला का प्रकोप तेजी से बढ़ जाता है। यह कीट गन्ने की पत्तियों से रस चूसकर फसल की उपज और गुणवत्ता दोनों को नुकसान पहुंचाता है। समय पर इसकी पहचान और नियंत्रण जरूरी है, वरना फसल को भारी हानि झेलनी पड़ सकती है।
उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और बिहार जैसे गन्ना उत्पादक राज्यों में यह कीट किसानों के लिए गंभीर चिंता का कारण बन चुका है। पायरिल्ला कीट मुख्यतः अप्रैल से लेकर अक्टूबर तक सक्रिय रहता है। मोदी शुगर मिल मोदीनगर के गन्ना विकास प्रबंधक राजीव त्यागी के अनुसार, इस कीट का प्रकोप खासकर अप्रैल-मई में शुरू होता है और अगस्त से अक्टूबर तक अपने चरम पर पहुंच जाता है।
राजीव त्यागी बताते हैं कि पायरिल्ला के नवजात शिशु गन्ने की पत्तियों से रस चूसते हैं, जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और पौधा कमजोर हो जाता है। इसके चलते गन्ने की उपज में 28-50% तक की गिरावट आ सकती है। इतना ही नहीं, गन्ने में मौजूद सुक्रोज की मात्रा 2-34% और शुद्धता 3-26% तक घट सकती है।
इस कीट की पहचान भूरे रंग की देह और सिर के आगे चोंच जैसी संरचना से की जा सकती है। इसके निम्फ के पीछे दो पूंछ जैसी संरचनाएं होती हैं और इसके प्रकोप के बाद पत्तियों पर लसलसा पदार्थ और काली फफूंद दिखाई देती है।
पायरिल्ला कीट सबसे पहले अप्रैल माह में दिखाई देता है। ऐसे में शुरुआती लक्षण दिखते ही कुछ जरूरी कदम उठाने चाहिए:
जैविक तरीकों से करें पायरिल्ला की रोकथाम:
प्राकृतिक रूप से भी इस कीट को नियंत्रित किया जा सकता है:
रासायनिक नियंत्रण: जब जैविक उपाय ना हों पर्याप्त:
यदि जैविक उपायों से नियंत्रण संभव न हो, तो निम्नलिखित कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है:
इन सभी का 625 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। हमेशा अनुशंसित मात्रा और सुरक्षा निर्देशों का पालन करें।
समय पर नियंत्रण से बढ़ेगी उपज और गुणवत्ता: पायरिल्ला कीट गन्ने की फसल के लिए बेहद हानिकारक है, लेकिन समय रहते जैविक और रासायनिक उपाय अपनाकर इसे रोका जा सकता है। इससे गन्ने की उपज और गुणवत्ता बनी रहती है और किसान को आर्थिक नुकसान से बचाया जा सकता है।