Sankranti 2025: आखिर क्यों मनाया जाता है मकर संक्रांति का त्योहार ? जानें इसके पीछे का इतिहास और धार्मिक कथा

Sankranti 2025: आखिर क्यों मनाया जाता है मकर संक्रांति का त्योहार ? जानें इसके पीछे का इतिहास और धार्मिक कथा

मकर संक्रांति

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कृषि दुनिया
  • 07 Jan, 2025 11:30 AM IST ,
  • Updated Tue, 07 Jan 2025 12:30 PM

मकर संक्रांति भारत का एक ऐसा त्योहार है, जो खगोलीय घटना, सांस्कृतिक धरोहर और कृषि जीवनशैली का अनमोल संगम है। हर साल 14 या 15 जनवरी को मनाया जाने वाला यह पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने का प्रतीक है, जो सर्दियों के अंत और नई ऊर्जा के आगमन का संकेत देता है। इसे देशभर में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है—उत्तर भारत में "मकर संक्रांति," तमिलनाडु में "पोंगल," और असम में "भोगाली बिहू।"

यह दिन तिल-गुड़ की मिठास, पतंगों की उड़ान, और दान-पुण्य की भावना से भरपूर होता है। अगर आप इस त्योहार के पीछे छिपे धार्मिक, सामाजिक और खगोलीय महत्व को समझना चाहते हैं या जानना चाहते हैं कि इसे देशभर में कैसे मनाया जाता है, तो यह लेख आपके लिए है!

मकर संक्रांति का इतिहास History of Makar Sankranti:

मकर संक्रांति का इतिहास बहुत प्राचीन है। यह त्योहार वैदिक काल से मनाया जा रहा है। पुराणों के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनिदेव से मिलने के लिए उनके घर आते हैं। यह त्योहार सूर्य की उपासना का पर्व है, जिसे सूर्य देवता की कृपा पाने के लिए मनाया जाता है। इसके अलावा, महाभारत में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि भीष्म पितामह ने अपना देह त्याग मकर संक्रांति के दिन ही किया था।

मकर संक्रांति का क्या अर्थ है What is the meaning of Makar Sankranti?

"मकर संक्रांति" का शाब्दिक अर्थ है मकर राशि में सूर्य का प्रवेश। "संक्रांति" शब्द का मतलब है "गति" या "परिवर्तन"। इस दिन से सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाता है। यह परिवर्तन न केवल खगोलीय दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है।

मकर संक्रांति का महत्व:

मकर संक्रांति का महत्व केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि यह कृषि और सामाजिक स्तर पर भी गहरा प्रभाव डालता है। यह त्योहार नई फसल के आगमन का प्रतीक है और इसे भारत के कई हिस्सों में किसान बहुत धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, तिल-गुड़ का सेवन करते हैं और दान-पुण्य करते हैं।

विभिन्न क्षेत्रों में मकर संक्रांति का महत्व:

  1. उत्तर भारत: उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड में इसे 'खिचड़ी पर्व' के रूप में मनाया जाता है। लोग गंगा, यमुना या अन्य पवित्र नदियों में स्नान कर दान-पुण्य करते हैं।
  2. पश्चिम भारत: गुजरात और राजस्थान में इसे "उत्तरायण" कहा जाता है और यहां पतंगबाजी का आयोजन होता है।
  3. दक्षिण भारत: तमिलनाडु में इसे "पोंगल" कहा जाता है, जो चार दिनों तक चलता है। यह फसल कटाई का पर्व है।
  4. पूर्व भारत: असम में इसे "भोगाली बिहू" के नाम से मनाया जाता है।

मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व:

मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व भी है। पृथ्वी के झुकाव और सूर्य की गति के कारण यह दिन वर्ष का वह समय होता है जब दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। खगोलशास्त्र के अनुसार, मकर संक्रांति वह दिन है जब सूर्य उत्तरायण में प्रवेश करता है, यानी सूर्य का झुकाव दक्षिण से उत्तर की ओर होता है। यह परिवर्तन मौसम में बदलाव का प्रतीक है, जिससे ठंड कम होने लगती है और गर्मियों का आगमन शुरू होता है।

मकर संक्रांति पर स्नान और दान का महत्व:

मकर संक्रांति पर गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी जैसी पवित्र नदियों में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन स्नान करने से पापों का नाश होता है और आत्मा शुद्ध होती है। इसके साथ ही, इस दिन दान-पुण्य का भी विशेष महत्व है।

दान करने की परंपरा:

  1. तिल और गुड़: मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ का सेवन और दान करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। यह मिठास और एकता का प्रतीक है।
  2. कपड़े और अनाज: इस दिन गरीबों को कपड़े, अनाज और अन्य वस्त्र दान करने की परंपरा है।
  3. गाय और घी का दान: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, मकर संक्रांति पर गाय का दान और घी का दान करना अत्यंत पुण्यकारी होता है।

मकर संक्रांति का सांस्कृतिक पहलू:

मकर संक्रांति केवल धार्मिक त्योहार नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक विविधताओं का भी प्रतीक है। भारत के विभिन्न हिस्सों में इसे अलग-अलग नामों और तरीकों से मनाया जाता है।

  1. पोंगल (तमिलनाडु): पोंगल चार दिनों तक मनाया जाने वाला त्योहार है जिसमें भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। लोग नई फसल से पोंगल (मीठा चावल) बनाते हैं और इसे देवताओं को अर्पित करते हैं।
  2. भोगाली बिहू (असम): यह फसल कटाई का त्योहार है, जिसमें पारंपरिक नृत्य और संगीत का आयोजन होता है।
  3. उत्तरायण (गुजरात): पतंगबाजी इस दिन का मुख्य आकर्षण है। आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है।
  4. लोहड़ी (पंजाब): मकर संक्रांति के एक दिन पहले लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। इसमें अलाव जलाकर गाने-नाचने की परंपरा है।

मकर संक्रांति का धार्मिक पहलू:

मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व भी बहुत बड़ा है। इस दिन को भगवान विष्णु और सूर्य देव की उपासना का दिन माना जाता है।

  1. भगवान विष्णु की पूजा: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन भगवान विष्णु ने असुरों का नाश किया था और पृथ्वी पर धर्म की स्थापना की थी।
  2. सूर्य देव की पूजा: मकर संक्रांति पर सूर्य देव को तिल और जल अर्पित किया जाता है। यह दिन सूर्य देव की ऊर्जा और उनकी कृपा पाने के लिए विशेष रूप से मनाया जाता है।

मकर संक्रांति शुभ मुहूर्त:

मकर संक्रांति पर शुभ कार्य करने के लिए सही समय का विशेष महत्व है। इस दिन का पुण्यकाल सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के बाद शुरू होता है।

सामान्य शुभ मुहूर्त:

  • पुण्य काल: सुबह 8:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक
  • महापुण्य काल: दोपहर 12:30 बजे से 2:00 बजे तक

मकर संक्रांति और समाज:

मकर संक्रांति सामाजिक एकता और सामुदायिक उत्सव का पर्व है। इस दिन लोग एक-दूसरे को तिल-गुड़ खिलाकर आपसी प्रेम और सद्भाव बढ़ाते हैं। पतंगबाजी जैसे आयोजनों से लोग एकजुट होते हैं और उत्साह के साथ त्योहार का आनंद लेते हैं।

मकर संक्रांति न केवल एक धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है, बल्कि यह भारतीय जीवन शैली, कृषि और खगोलीय महत्व का उत्सव भी है। यह त्योहार हमें प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने, सामाजिक समरसता बढ़ाने और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का संदेश देता है। आइए, हम सब मिलकर इस पावन पर्व को पूरे हर्ष और उल्लास के साथ मनाएं और अपने जीवन में नई ऊर्जा और प्रेरणा लाएं।

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