देशभर में किसानों के बीच अब औषधीय पौधों की खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है। खासकर एलोवेरा (घृतकुमारी) की खेती, जो कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल मानी जाती है। बाजार में हर्बल और कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स की बढ़ती मांग के चलते एलोवेरा की खेती किसानों के लिए सुनहरा अवसर बन गई है। यदि वैज्ञानिक तरीके से इसकी खेती की जाए तो किसान एक हेक्टेयर भूमि से सालाना 8 से 10 लाख रुपए तक की कमाई कर सकते हैं।
एलोवेरा, जिसे घृतकुमारी या ग्वारपाठा भी कहा जाता है, एक रसीला पौधा है जिसकी पत्तियों में मौजूद जेल औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसका इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधनों, हर्बल दवाओं और स्वास्थ्य उत्पादों में बड़े पैमाने पर किया जाता है। एलोवेरा के पौधे की लंबाई लगभग 60 से 100 सेंटीमीटर तक होती है और इसकी पत्तियां मोटी, भालाकार और हल्की हरी होती हैं।
एलोवेरा का उपयोग मुख्य रूप से फेस वॉश, क्रीम, जेल, फेस पैक, हेयर ऑयल और दवाइयों में किया जाता है। यह त्वचा को निखारने के साथ-साथ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है। बड़ी कंपनियां जैसे पंतजलि, डाबर और हिमालया एलोवेरा से बने प्रोडक्ट्स बाजार में उतार रही हैं। यही कारण है कि आज कई कंपनियां किसानों से इसका कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग भी करवा रही हैं।
खेती के लिए सही मौसम और मिट्टी
एलोवेरा की खेती गर्म और शुष्क जलवायु में अच्छी होती है। इसे रेतीली या दोमट मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है। पानी निकासी वाली जमीन इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है, क्योंकि इसमें पानी रुकने से पौधे की जड़ें सड़ जाती हैं। इसकी बुवाई का सबसे अच्छा समय जुलाई से अगस्त माना जाता है।
खेत की तैयारी और पौधारोपण
खेत की अच्छी तरह जुताई करने के बाद इसमें प्रति हेक्टेयर लगभग 15-20 टन गोबर की खाद डालनी चाहिए। इसकी रोपाई 40 सेमी पौधे से पौधे की दूरी और 45 सेमी कतार से कतार की दूरी पर करनी होती है। एक हेक्टेयर में लगभग 50 हजार पौधों की जरूरत होती है।
सिंचाई और देखभाल
एलोवेरा को बहुत अधिक पानी की जरूरत नहीं होती। पहली सिंचाई पौधारोपण के तुरंत बाद करें और इसके बाद मिट्टी के सूखने पर ही पानी दें। अधिक पानी देने से पौधा खराब हो सकता है। सामान्य मौसम में सप्ताह में एक बार सिंचाई पर्याप्त रहती है।
लागत और कमाई
इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चरल रिसर्च (ICAR) के अनुसार, एक हेक्टेयर में एलोवेरा की खेती का शुरुआती खर्च लगभग ₹50,000 तक आता है। पहले साल में किसान को करीब 40-45 टन पत्तियां मिलती हैं, जिनकी बाजार में कीमत ₹15,000 से ₹25,000 प्रति टन तक रहती है। इस हिसाब से एक किसान सालाना 8 से 10 लाख रुपये तक की आमदनी आसानी से कमा सकता है।
कहां बेचें और कौन खरीदता है
एलोवेरा की पत्तियां आयुर्वेदिक दवाइयां और सौंदर्य उत्पाद बनाने वाली कंपनियों को बेची जा सकती हैं। कई कंपनियां किसानों से कॉन्ट्रैक्ट बेस पर खरीदारी भी करती हैं। भारत में डाबर, पंतजलि, बायोटिक, हिमालया जैसी प्रमुख कंपनियां एलोवेरा की बड़ी खरीदार हैं।
एलोवेरा की खेती के फायदे
निष्कर्ष
एलोवेरा की खेती आज के दौर में किसानों के लिए एक बेहतरीन बिजनेस मॉडल बनकर उभरी है। कम लागत, कम पानी और लगातार बढ़ती बाजार मांग के कारण यह खेती आने वाले वर्षों में और भी लाभदायक साबित हो सकती है। अगर किसान आधुनिक तरीकों से एलोवेरा की खेती करें और कंपनियों से सीधा अनुबंध करें, तो यह फसल उनकी आमदनी को कई गुना बढ़ा सकती है।