किसानों और सरकारी कर्मचारियों की आय वृद्धि में एक गहरा अंतर सदियों से बना हुआ है। आज भी यह असमानता चर्चा का विषय बनी हुई है। 'किसान तक' की लाइव चर्चा के दौरान कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा ने इसी मुद्दे पर अपने विचार साझा किए। आइए जानते हैं उनकी राय और इसके पीछे के तर्क।
देशभर में किसान लंबे समय से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं। पंजाब और हरियाणा के किसान बीते 11 महीने से इस मुद्दे पर आंदोलनरत हैं। उनकी कुल 12 मांगों में एमएसपी कानून सबसे महत्वपूर्ण है।
हालांकि, केंद्र सरकार की तरफ से अब तक इस पर कोई ठोस बातचीत का प्रस्ताव नहीं आया है। वहीं दूसरी ओर, सरकार ने 8वें वेतन आयोग को मंजूरी दे दी है। इससे यह सवाल उठता है कि जब सरकारी कर्मचारियों के लिए वेतन वृद्धि के लिए धन उपलब्ध है, तो किसानों को एमएसपी की गारंटी देने में हिचक क्यों?
देविंदर शर्मा ने चर्चा के दौरान 45 वर्षों में किसानों और सरकारी कर्मचारियों की आय वृद्धि का तुलनात्मक विश्लेषण किया। उन्होंने बताया कि 1970 में गेहूं का मूल्य 76 रुपये प्रति क्विंटल था, जो 2015 तक केवल 1450 रुपये हुआ। यह मात्र 19 गुना वृद्धि है।
इसके विपरीत, सरकारी कर्मचारियों के वेतन में 120 से 150 गुना तक की वृद्धि हुई है। इसमें उनके बेसिक पे और महंगाई भत्ता (डीए) शामिल हैं, अन्य लाभों को तो इसमें जोड़ा ही नहीं गया है। यह स्पष्ट करता है कि आर्थिक नीतियों में किसानों को लगातार उपेक्षित रखा गया है।
बुजुर्ग किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल पिछले 53 दिनों से आमरण अनशन पर हैं। बावजूद इसके, केंद्र सरकार ने किसानों के साथ संवाद स्थापित करने का प्रयास नहीं किया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देश में 14 करोड़ से अधिक किसान हैं, जिनमें से 88% के पास एक हेक्टेयर से भी कम जमीन है। इसके बावजूद सरकार किसानों की इस न्यायोचित मांग को अनदेखा कर रही है।
खेती में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति: अगर किसानों जैसी स्थिति सरकारी कर्मचारियों की होती, तो नौकरी छोड़ने या आत्महत्या के मामले बढ़ सकते थे। देविंदर शर्मा ने कहा कि भारत में एक ऐसी आर्थिक संरचना तैयार की गई है, जो खेती को गरीबी में बनाए रखती है। किसानों को बुनियादी सुविधाओं और समर्थन से वंचित रखा गया है, जबकि अन्य क्षेत्रों को पनपने का भरपूर मौका दिया गया है।
किसानों और कर्मचारियों की तुलना में असमानता: कृषि अर्थशास्त्री ने कहा कि देश में कुछ वर्गों को विशेष रूप से बढ़ावा दिया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर, 8वें वेतन आयोग के तहत एक चपरासी की सैलरी 18,000 रुपये से बढ़कर 46,000 रुपये हो जाएगी। इसके विपरीत, एक कृषि परिवार की औसत मासिक आय मात्र 10,218 रुपये है। यह आंकड़ा बताता है कि किसानों की आय में तेजी लाने के लिए कोई ठोस नीति नहीं है।
कृषि क्षेत्र के लिए फिटनेस फैक्टर की जरूरत: सरकारी कर्मचारियों के लिए एक फिटनेस फैक्टर लागू किया जाता है, जिससे उनकी आय में तेजी से वृद्धि होती है। यह मॉडल किसानों के लिए भी अपनाया जाना चाहिए। इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और वे आत्मनिर्भर बन सकेंगे।
न्यायपूर्ण आर्थिक नीतियों की मांग: देविंदर शर्मा ने कहा कि यह समय है जब सरकार को आर्थिक नीतियों को पुनः परिभाषित करना चाहिए। खेती के महत्व को समझते हुए, किसानों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी सुनिश्चित करनी होगी।
किसानों को एमएसपी की गारंटी देना समय की मांग है। अगर 8वें वेतन आयोग के तहत सरकारी कर्मचारियों की आय में बढ़ोतरी की जा सकती है, तो किसानों के लिए यह सुरक्षा कवच क्यों नहीं? कृषि क्षेत्र की बेहतरी के बिना देश की प्रगति अधूरी है।
सरकार को किसानों की आय वृद्धि पर भी उतना ही ध्यान देना चाहिए जितना सरकारी कर्मचारियों पर दिया जाता है। एमएसपी की कानूनी गारंटी किसानों के भविष्य को सुरक्षित बनाने का एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।