रबी सीजन की शुरुआत के साथ ही देशभर के किसान चना बोने की तैयारी में जुट गए हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि चना फसल में सूखने (विल्ट) की समस्या सबसे आम बीमारी है, जिससे किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ता है। लेकिन अगर किसान बुआई से पहले सही तरीके से बीजोपचार (Seed Treatment) कर लें, तो इस समस्या से पूरी तरह बचा जा सकता है और उत्पादन में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी होती है।
चना फसल को मुरझाने, बीमारियों और कीट संक्रमण से बचाने के लिए बीजोपचार करना आवश्यक है। रोपण से पहले बीजों को फफूंदनाशक (Fungicide) और कीटनाशक (Insecticide) से उपचारित करने पर बीज मजबूत होते हैं और पौधों की वृद्धि बेहतर होती है।
बीजोपचार के प्रमुख लाभों में मुरझाने से बचाव, बीमारियों पर नियंत्रण और कीट संक्रमण से सुरक्षा शामिल हैं। कार्बोक्सिन जैसे फफूंदनाशी से उपचार करने पर फ्यूजेरियम विल्ट जैसी मिट्टी जनित बीमारियों से बचाव होता है, जबकि ट्राइकोडर्मा और जैविक उपचार फसल की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं।
बीजों को रोपण से कम से कम 24 घंटे पहले उपचारित करना चाहिए। इससे दवा बीजों पर अच्छी तरह चिपक जाती है और सूखने का पर्याप्त समय मिल जाता है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, कई बार किसान बीजोपचार तो करते हैं, लेकिन सही क्रम में नहीं, जिससे अपेक्षित परिणाम नहीं मिलते। इसलिए इसे निर्धारित क्रम और मात्रा में करना जरूरी है।
सबसे पहले बीजों को साफ कर लें। फिर कार्बोक्सिन और ट्राइकोडर्मा पाउडर से बीजों को उपचारित करें। उपचार के बाद बीजों को छांव में सुखाएं। सूखने के बाद अमोनियम मोलिब्डेट, रायजोबियम और पीएसबी कल्चर से मिलाएं। बीजों को पूरी तरह सूखने के बाद बुआई करें।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, सही तरीके से बीजोपचार करने पर चना फसल में 25 से 40 प्रतिशत तक अधिक उपज प्राप्त होती है। इससे सूखने, मुरझाने और रोगों की समस्या लगभग समाप्त हो जाती है। बीजोपचार न केवल उत्पादन बढ़ाता है, बल्कि लागत कम कर किसानों की आमदनी में भी वृद्धि करता है।
चना फसल में बीजोपचार एक छोटा लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण कदम है जो पूरी फसल की गुणवत्ता और उत्पादन को प्रभावित करता है। यदि किसान इसे वैज्ञानिक तरीके से अपनाएं, तो वे न केवल रोग-मुक्त फसल प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि दोगुनी पैदावार का लाभ भी उठा सकते हैं।