इन 4 बीमारियों से होती है सरसों की फसल बर्बाद, जानें लक्षण और समाधान के तरीके!

इन 4 बीमारियों से होती है सरसों की फसल बर्बाद, जानें लक्षण और समाधान के तरीके!

सरसों की फसल की प्रमुख बीमारियां

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कृषि दुनिया
  • 09 Jan, 2025 11:30 AM IST ,
  • Updated Thu, 09 Jan 2025 12:30 PM

सरसों की फसल रबी मौसम की सबसे महत्वपूर्ण फसलों में से एक है। इसके अंतर्गत तोरिया, राया, तारामीरा, भूरी और पीली सरसों जैसी विविध प्रजातियां आती हैं। हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में सरसों की खेती बड़े पैमाने पर होती है। कम पानी की आवश्यकता के कारण सरसों की फसल किसानों के लिए अधिक लाभदायक साबित होती है।
सरसों की फसल में समय-समय पर देखभाल और बीमारियों की पहचान बहुत महत्वपूर्ण है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि समय रहते रोगों की पहचान कर उनकी रोकथाम से उपज में वृद्धि की जा सकती है। आइए जानें सरसों की फसल में होने वाली प्रमुख बीमारियां, उनके लक्षण और रोकथाम के उपाय।

सरसों की प्रमुख बीमारियां और उनके लक्षण Major diseases of mustard and their symptoms:

1. अल्टरनेरिया ब्लाइट

यह सरसों की फसल की सबसे आम बीमारी है। इसके लक्षण इस प्रकार हैं:

  • पत्तों और फलियों पर भूरे रंग के गोल धब्बे।
  • समय के साथ धब्बों का रंग काला हो जाता है।
  • पत्तियों पर गोलाकार छल्ले बनते हैं।

2. फुलिया या डाउनी मिल्ड्यू

इस बीमारी के लक्षण पत्तियों पर देखे जा सकते हैं:

  • पत्तियों की निचली सतह पर भूरे धब्बे।
  • धब्बों के ऊपरी हिस्से का रंग पीला हो जाता है।
  • धब्बों पर पाउडर जैसा पदार्थ जमा हो जाता है।

3. सफेद रतुआ

यह बीमारी मुख्य रूप से पछेती फसल को प्रभावित करती है:

  • पत्तियों पर छोटे सफेद और क्रीम रंग के धब्बे दिखना।
  • तने और फूल विकृत आकार में बदल जाते हैं, जिसे स्टैग हैड कहते हैं।

4. तना गलन रोग

इस बीमारी के लक्षण तने और टहनियों पर नजर आते हैं:

  • तनों पर भूरे रंग के लंबे धब्बे।
  • बाद में धब्बों पर सफेद फफूंद बन जाती है।
  • तने कमजोर होकर टूट जाते हैं।
  • तनों के भीतर काले रंग के छोटे-छोटे पिंड बनते हैं।

बीमारियों की रोकथाम के उपाय

1. अल्टरनेरिया ब्लाइट, फुलिया और सफेद रतुआ के लिए

  • 600 ग्राम मँकोजेब (डाइथेन या इंडोफिल एम-45) को 250-300 लीटर पानी में मिलाएं।
  • इस घोल को प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़कें।
  • छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर 3-4 बार करें।

2. तना गलन रोग के लिए

  • बीज को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम (बाविस्टिन) प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
  • जिन क्षेत्रों में तना गलन रोग बार-बार होता है, वहां बुवाई के 45-50 दिन और 65-70 दिन बाद कार्बेन्डाजिम का 0.1% घोल बनाकर छिड़काव करें

3. छिड़काव का सही समय

  • छिड़काव हमेशा शाम 3 बजे के बाद करें।
  • इससे दवाओं का प्रभाव अधिक समय तक बना रहता है।

वैज्ञानिकों की सलाह और जागरूकता

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के तिलहन विभाग के वैज्ञानिकों ने किसानों को इन बीमारियों से निपटने के लिए विशेष सुझाव दिए हैं। अनुसंधान क्षेत्र का दौरा करने के बाद यह सलाह दी गई है ताकि किसान फसल में रोगों को नियंत्रित कर अधिक उपज प्राप्त कर सकें।
सरसों की फसल की बीमारियों की समय पर पहचान और रोकथाम से किसानों को बेहतर लाभ मिल सकता है। उन्नत वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाकर किसान अपनी फसल की गुणवत्ता के साथ-साथ उत्पादन में भी वृद्धि कर सकते हैं।

निष्कर्ष:

सरसों की खेती में नियमित देखभाल और रोग प्रबंधन अत्यंत महत्वपूर्ण है। समय पर दवा का छिड़काव और वैज्ञानिक सलाह का पालन करके किसान अपनी फसल को बीमारियों से बचा सकते हैं। जागरूकता और सही उपायों को अपनाकर किसान कम खर्च में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।

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