बिना जुताई गेहूं की खेती अब हुई आसान—हैप्पी सीडर व जीरो टिल ड्रिल पर मिल रहा सरकारी अनुदान, जानें कैसे उठाएं लाभ

बिना जुताई गेहूं की खेती अब हुई आसान—हैप्पी सीडर व जीरो टिल ड्रिल पर मिल रहा सरकारी अनुदान, जानें कैसे उठाएं लाभ

हैप्पी सीडर व जीरो टिल ड्रिल पर मिल रहा सरकारी अनुदान

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कृषि दुनिया
  • 18 Nov, 2025 10:23 AM IST ,
  • Updated Tue, 18 Nov 2025 06:45 PM

Uttar Pradesh News: उत्तर प्रदेश में इस साल किसानों के लिए गेहूं की खेती को आसान और किफायती बनाने का बड़ा रास्ता खुल गया है। अब खेत जोते बिना भी गेहूं की बोआई की जा सकती है। सरकार की ओर से आधुनिक कृषि यंत्रों पर अनुदान दिए जाने के बाद यह तकनीक किसानों के बीच तेज़ी से लोकप्रिय हो रही है। साथ ही धान की पराली को न जलाने पर सरकार का खास फोकस है, जिससे वायु प्रदूषण भी कम होगा और खेत की उर्वरता भी बढ़ेगी।

इस समय प्रदेश के अधिकतर जिलों में धान की कटाई लगभग पूरी हो चुकी है और कई इलाकों में हाल ही में हुई बारिश ने खेतों में नमी बढ़ा दी है—जो बिना जोताई खेती के लिए बिल्कुल उपयुक्त मानी जा रही है। शासन ने सभी जिलों को पराली न जलाने के लिए निर्देश दिए हैं और नोडल अधिकारी भी तैनात किए गए हैं।

बिना जोते बोआई: किसानों को मिलेंगे कई बड़े फायदे

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार खेत में बची पराली समय के साथ सड़कर प्राकृतिक खाद में बदल जाती है। इससे फसल को अतिरिक्त पोषक तत्व मिलते हैं। साथ ही:

  • डीजल की बचत
  • सिंचाई की बचत
  • मजदूरी की बचत
  • महंगे उर्वरकों का पूरा लाभ
  • पौधे बेहतर निकलते हैं और खरपतवार/कीट नियंत्रण आसान

अक्टूबर से 15 दिसंबर तक रबी की बुआई का प्रमुख समय माना जाता है, और उत्तर प्रदेश में गेहूं इसकी मुख्य फसल है।

इन मशीनों से बिना जोते हो सकती है बोआई — और सरकार दे रही अनुदान

योगी सरकार किसानों को आधुनिक यंत्रों पर सरकारी अनुदान दे रही है। इनमें प्रमुख हैं:

  • जीरो टिल सीड ड्रिल
  • जीरो फर्टी सीडर
  • हैप्पी सीडर
  • स्ट्रा रीपर
  • बेलर
  • फोरेज हार्वेस्टर
  • पराली डीकंपोजर

इन मशीनों से धान की पराली के बीच ही गेहूं की बोआई संभव हो जाती है। सरकार ‘किसान रथ’ के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों को लगातार जागरूक भी कर रही है।

बिना जोताई तकनीक खास क्यों?

धान और गेहूं के फसल चक्र वाले क्षेत्रों में यह तकनीक बहुत उपयोगी है।

  • खेत की तैयारी वाले दो हफ्ते की देरी बचती है।
  • समय से बोआई होने पर फसल की उपज बढ़ जाती है।
  • पराली खेत में ही सड़कर कंपोस्ट खाद का काम करती है।
  • पर्यावरण में कार्बन उत्सर्जन घटता है।

कैसे काम करती है जीरो-टिल मशीन?

इन यंत्रों में हल के फाल की जगह दांते लगे होते हैं।

  • ये दांते मिट्टी को मानक गहराई तक चीरते हैं।
  • मशीन के चोंगे से खाद व बीज सीधे धरती में गिरते हैं।
  • अब ऐसी मशीनें भी उपलब्ध हैं, जो चलने के साथ हल्की जोताई भी कर देती हैं।

बुआई से पहले ये सावधानियां ज़रूरी

  • खेत से खरपतवार और बड़े पुआल के टुकड़े हटा लें।
  • खेत में नमी कम हो तो हल्का पाटा लगा दें।
  • बेहतर हो कि कटाई से कुछ दिन पहले हल्की सिंचाई कर दें।
  • बोआई के समय केवल दानेदार खाद का प्रयोग करें।

वायु प्रदूषण भी होगा कम

CIMMYT के कृषि वैज्ञानिक अजय कुमार बताते हैं—

  • 1 लीटर डीज़ल जलने पर 2.6 किलो CO₂ हवा में जाती है।
  • एक हेक्टेयर जोताई में लगभग 150 लीटर डीज़ल लगता है।
  • यानी खेत तैयार करने से ही 450 किलो कार्बन उत्सर्जन हो जाता है।

जीरो-टिल मशीनें ईंधन और पानी दोनों की खपत कम कर पर्यावरण की रक्षा करती हैं।

बिना जोते बोआई के बड़े फायदे (किसान जरूर जानें)

  1. प्रति हेक्टेयर ₹2,000–₹2,500 तक लागत में कमी
  2. कम बीज में भी 10–30% तक अधिक उपज
  3. श्रम, संसाधन और ऊर्जा की 80% तक बचत
  4. सिंचाई में 15% तक पानी की बचत
  5. लाइन से बोआई होने पर कीट–रोग नियंत्रण आसान
  6. पराली संरक्षित रहने से मिट्टी में कार्बन बढ़ता है—मृदा उपजाऊ बनती है
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