Mustard irrigation: सरसों की पहली सिंचाई, कब करें, क्यों करें और इन बातो का रखे खास ध्यान, सब कुछ जानें यहाँ

Mustard irrigation: सरसों की पहली सिंचाई, कब करें, क्यों करें और इन बातो का रखे खास ध्यान, सब कुछ जानें यहाँ

सरसों की पहली सिंचाई

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कृषि दुनिया
  • 28 Nov, 2024 11:30 AM IST ,
  • Updated Thu, 28 Nov 2024 12:30 PM

सरसों की खेती भारत में तिलहनी फसलों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसकी खेती से किसान अच्छी आमदनी कर सकते हैं। लेकिन सरसों की पहली सिंचाई सही समय पर और सही विधि से करना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि इससे फसल की सेहत और उपज पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
भारतीय सरसों अनुसंधान संस्थान (सेवर, भरतपुर) ने किसानों के लिए इस विषय पर उपयोगी सलाह जारी की है। आइए विस्तार से जानते हैं कि सरसों की सिंचाई में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

सरसों की पहली सिंचाई कब और कैसे करें How to do the first irrigation of mustard?

सरसों की पहली सिंचाई करते समय इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:

भूमि की नमी की जांच करें: सिंचाई शुरू करने से पहले, भूमि की नमी को 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई तक जांचें। अगर मिट्टी में पर्याप्त नमी हो, तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं है।

अत्यधिक सिंचाई से बचें: सरसों की अत्यधिक सिंचाई से कॉलर रॉट रोग का खतरा बढ़ जाता है। यह रोग फसल को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है।

समय का ध्यान रखें: सरसों की पहली सिंचाई फसल लगाने के 28-35 दिनों के भीतर करें। इस समय पौधे की जड़ें मजबूत हो रही होती हैं, और सही मात्रा में पानी उनकी वृद्धि में मदद करता है।

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झुलसने के लक्षण और रोकथाम के उपाय Symptoms and prevention measures of burns:

अगर किसी किसान ने पहले ही सरसों की सिंचाई कर दी है और फसल झुलसने के लक्षण दिखा रही है, तो निम्नलिखित उपाय अपनाएं:

  1. स्ट्रेपटोमाइसिन और कार्बेंडाजिम का उपयोग:
  2. स्ट्रेपटोमाइसिन (200 पीपीएम): 200 मिलीग्राम दवा को 1 लीटर पानी में घोलकर संक्रमित पौधों पर छिड़काव करें।
  3. कार्बेंडाजिम (2% घोल): इसका छिड़काव भी झुलसने से बचाव में मदद करता है।
  4. संक्रमण भाग पर छिड़काव: यह सुनिश्चित करें कि दवा का छिड़काव फसल के प्रभावित हिस्सों पर अवश्य पहुंचे।

कॉलर रॉट रोग: लक्षण और बचाव Collar Rot Disease: Symptoms and Prevention:

कॉलर रॉट, जिसे तना गलन रोग भी कहते हैं, एक कवक जनित रोग है। यह रोग विशेष रूप से उन परिस्थितियों में फैलता है जब तापमान अधिक और मिट्टी में नमी अत्यधिक होती है।

लक्षण:

  1. पौधों के तनों का सड़ना।
  2. पत्तियों पर गहरे हरे धब्बे जो बाद में सफेद हो जाते हैं।
  3. फलों पर गीले धब्बे बनना।
  4. पौधों का मुरझाना।

बचाव:

  • सिंचाई का संतुलन बनाए रखें।
  • मिट्टी में जल निकासी का प्रबंधन करें।
  • संक्रमित खेतों में फसल चक्र अपनाएं।

सरसों में सिंचाई का सही क्रम Correct sequence of irrigation in mustard:

सरसों की फसल में सिंचाई का सही क्रम फसल की बेहतर पैदावार के लिए अत्यंत आवश्यक है:

  1. पहली सिंचाई: फसल लगाने के 28-35 दिनों बाद, जब पौधे फूलने की स्थिति में आते हैं।
  2. दूसरी सिंचाई: फलियां बनने के दौरान, 70-80 दिनों के बाद। यदि सर्दी के मौसम में बारिश हो, तो दूसरी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती।

विशेष सलाह:

  • पानी की कमी की स्थिति में एक ही बार सिंचाई करें।
  • खारे या क्षारीय पानी का उपयोग करते समय जिप्सम और गोबर की खाद मिलाएं।

सरसों की फसल के लिए संस्थान की सलाह: भारतीय सरसों अनुसंधान संस्थान ने किसानों को सलाह दी है कि वे किसी भी समस्या या जानकारी के लिए नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) या स्थानीय कृषि अधिकारी से संपर्क करें। इसके साथ ही, खेती में नई तकनीकों और सावधानियों को अपनाकर किसान अपनी फसल को रोगों से बचा सकते हैं और बेहतर उत्पादन ले सकते हैं।

निष्कर्ष: सरसों की सिंचाई का सही समय और विधि फसल की पैदावार और गुणवत्ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारतीय सरसों अनुसंधान संस्थान की सलाह का पालन कर किसान रोगों से बचाव कर सकते हैं और अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। समय पर सही निर्णय और सतर्कता ही सफल खेती की कुंजी है।

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